HomeHOMERaktamokshana treatment

Raktamokshana treatment

Table of Contents

जलौका परिचय- जलौका का लौकिक नाम जोंक है। ये जल में पैदा होती हैं,

जल में रहती हैं, Raktamokshana treatment तथा जल ही इनका आयुष्य है- खानपान, पोषण का मुख्य प्राप्ति स्थान हैं- अतएव जलौका ऐसा कहा है। ये प्रायः जल में, कीचड़ में तथा आनूप देश में प्राप्त होती है। जलौका-सविष और निर्विष भेद से दो प्रकार की होती है। सविष जलौका का प्रयोग चिकित्सा में वांछनीय नहीं है। इसके दंश से, शोथ, भयंकर कंडू, मुमूर्च्छा, ज्वर, दाह, च्छर्दि, मद, अंगसाद ये लक्षण उत्पन्न होते हैं। सविष जलौकाएं वे हैं जो विपैले है। मत्स्य, कीड़े, मेढ़क के सड़े हुए, गले हुए मल मूत्र से युक्त दुष्ट जल में उत्पन्न होती है। वाग्भट ने मत्स्य, मेढक, कीटकादि के मल मूत्र के अतिरिक्त उनके मृत शरीर के सड़ान से भी इनकी उत्पत्ति बताई है। ३७ जो जलौकाएं दंश स्थान में उपर्युक्त प्रकार से शोथ, कंडु आदि उपद्रव न करें, और जो रक्तमोक्षण में प्रयोगार्ह होती है उसे निर्विष जलौका कहते हैं। ये जलौकायें ऐसे पानी में रहती हैं, जिसमें कमल, उत्पल, नलिन कुमुद, पुंडरीक, कुवलय (ये सब कमल के प्रकार हैं।) तथा शैवल प्रचुर प्रमाण में रहते हों, इनके सड़ान मैं इनकी उत्पत्ति होती है। ये जलौकाएं निर्मल एवं सुगंधित जल में रहती हैं। विषैले पदार्थों का भक्षण नहीं करती, और कीचड़ में नहीं रहती।

उपर्युक्त जलौकाएं सामान्यतः यवन देश में, पांड्य देश में, सहह्य और पौतन क्षेत्र में रहती हैं। Raktamokshana treatment ये शरीर से मोटी, बलवान, जल्दी-जल्दी खून चूसनेवाली, अधिक खून लेनेवाली, और निर्विष होती है। यवन देश को तुरुष्क देश (तुर्क), पांड्य-मद्रास, प्रांत के चोल देश का नैऋव्य भाग, सह्य नर्मदा तीर समीपस्थ सह्याद्रि के पास (महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश) का भाग, पौतन मथुरा प्रदेश ऐसी मान्यता है।

सविष और निर्विष जलौका का शास्त्र में विस्तृत वर्णन दिया गया है। तत्पूर्व जलौका का आधुनिक शास्त्र के अनुसार परिचय दिया जाता है।

आधुनिक मत के अनुसार जलौका उन प्राणियों का नाम है जिनका हिरुडिनीया वर्ग में (Hirudinea) समावेश होता है। अंग्रेजी में इसे लिच (Leach) कहते हैं। इनके मुख के लालास्त्राव में एक विशिष्ट पदार्थ पैदा होता है जो रक्त को जमने नहीं देता। इन जलौका के दो प्रकार होते हैं। १. हिरुडो मेडिसिनेलिस (Hirudo medicinalis) नामक जलौंकाएं (जो आयुर्वेद में निर्विष कही है) चिकित्सा में प्रयुक्त की जाती हैं। २ दूसरी-हिरुडो डेट्रिमेंटल (Hirudo Detrimental) नामक हैं- Raktamokshana treatment (जो आयुर्वेद में सविष काही हैं) जो काटने पर विषाक्त लक्षणों को पैदा करती है।

जलौका के स्वरूप के बारे में प्राणिशास्त्र संबंधित वर्णन विस्तार से देना हो तो उसमें बहुत कुछ लिखा जा सकता है, किंतु वह सब रक्तमोक्षण कर्म की दृष्टि से आवश्यक नहीं है। Raktamokshana treatment यहां कुछ आवश्यक ऐसा वर्णन दिया जाता है जिससे प्रयोग में कुछ साहाय्य होता हो, तथा आयुर्वेद में जलौका का जो वर्णन दिया है उसे समझने में लाभ होता हो।

जलौकाएं जो चिकित्सोपयोगी होती हैं वे तालाब में छोटे-छोटे डबकों में, और वेगरहित झरनों में पाई जाती हैं। दुनिया के बहुत से प्रांतों में ये मिलती है। हिरुडों मेडिसिनेलिस ये ब्रिटेन में और आर. मेडिसिनैलिस (R. Medicinalis) वे जलौका आस्ट्रेलिया में मिलती हैं। ये प्रायः ६ से १० सें. मी. अर्थात २ से ३ इंच लंबी होती किंतु इन में संकोच और प्रसरणशीलता होती है Raktamokshana treatment जिससे ये अपनी लंबाई को कम ज्यादा करती है। इसी संकोच और प्रसरण की गति के द्वारा ये चेष्टाएं करती हैं ये पानी में अच्छी तरह तैरती हैं। इनका ऊपरी भाग (Convex) और आभ्यंतर भाग गोल फूला हुआ होता है। जलौका के दोनों बाजू में सामने और पीछे के भाग में एक विशिष्ट प्रकार की चूषक (Succer) जैसी रचना होती है-इस से वह दोनों बाजू से अपने शरीर को आधार स्तर पर पकड़ कर रखती हैं। इसका रंग चमकदार, धूमिल लाल होता है। इसके संपूर्ण शरीर पर आडी वर्तुलाकार (Transvers circular) रेखाएं होती हैं। इन रेखाओं के द्वारा वह छोटे-छोटे विभागों में (Annuly) विभक्त होती हैं। यह रचना गंडूपदकृमि (Earthworm) के समान होती है। सामने के चूषक (Succer) के पास पांच जुड़वे काले धब्बे होते हैं। ये इनकी आंखें हैं। इनके शरीर पर एक बहुत पतली त्वचा का आवरण होता है। Raktamokshana treatment यह आवरण सतत बदलता रहता है। इसी के नीचे त्वचा होती है। इन की त्वचा मानवीय कोष (Human cells) के सदृश कोषयुक्त होती है इन त्वचा के कोष में नीचे ही रक्त के स्त्रोतस (Blood) capillaries) रहते हैं। जलौका का रक्त सतत जल के सान्निध्य में रहता है। इनका श्वासोच्छ्‌वास त्वचा के द्वारा होता है। त्वचा और पाचन संस्था (Elementry canal) के बीच का भाग मज्जा सदृश् धातु से (connective tissue) से व्याप्त रहता है। इनकी त्वचा पर असंख्य सूक्ष्म ग्रंथियां होती हैं जो एकस्निग्ध स्त्राव सतत त्वचा के ऊपर छोड़ती है। इस स्त्राव के कारण इनकी त्वचा अत्यंत मुलायम और फिसलने वाली हो जाती है। जलौका में मांसपेशियाँ भी विकसित होती है। इनकी पेशियाँ वर्तुलाकार (Circular) तथा दीर्घाकार (Longitudinal) रहती हैं। जिनसे ये संकोच और विकास की गतियां करती है।

पाचन संस्थान में मुख, जबड़ा (jaw), आमाशय, आंत्र, अंतर्गुद, बाह्यगुद, ये अवयव विकसित रहते हैं। Raktamokshana treatment ये जो रक्त- चूसती हैं- मुंह के बाद कंठ में जाता है और नीचे आमाशय में पहुँच जाता है। मुंह से लालास्त्रावी ग्रंथियाँ लालास्त्राव (Hirudin) को स्ववित करती है। यह रक्त को स्कंदन (coagulation) होने से रोकता है। पाचन संस्थान को आशयों की प्रसारण शक्ति खूब होती है। लिये हुए रक्त का स्वरूपांतर तुरन्त प्रारंभ होता है। किंतु पूर्ण पाचन के लिए कई महीने लग जाते हैं। जलौका का मल विसर्जन संस्थान (excretory system), वातवह संस्थान (Nervous System) भी होता है। रक्तवह संस्थान गंडूपद कृमि के सदृश् होता है। इनमें प्रजनन संस्थान (Reproductive System) भी होता है और नर तथा मादी के अवयव विकसित होते हैं।

जलौका का आयुर्वेदीय वर्णन

सुश्रुत ने तथा वाग्भट ने जलौकाएं सविष और निर्विष ऐसे दो प्रकार की कहाँ है। इन दोनों के छः छः भेद करके कुल १२ प्रकार की जलौकाएं कही है। *२ सुश्रुत ने प्रत्येक का नमतः वर्णन किया है- Raktamokshana treatment और वाग्भट ने इन्हीं नामों का प्रयोग स्वरूप दर्शक किया है। वस्तुतः जलौका के ये नाम उनका स्वरूप दर्शक ही समझना चाहिए। ये नाम इनकी आकृति, वर्ण, त्वचा की विशेषता, सिर की विशेषता इत्यादि के बोधक हैं। इन सबका सम्मिलित वर्णन देखने पर ऊपर जो आधुनिक विज्ञान के अनुसार जलौका का वर्णन किया गया है- वह प्रायशः उक्त हो जाता है-

सविष जलौकाएं – सविष जलौकाओं का नाम और स्वरूप निम्नलिखित प्रकार का है।

1. कृष्णा जलौका-ये अंजन-कज्जल के समान काली होती होता है। Raktamokshana treatment वाग्भट ने भी भृशं कृष्णा जलौका को सविष कहा है। है-इसका शिर चौडा

2. कर्बुरा जलौका-ये जलौका वर्मि नामक मत्स्य के आकार की होती हैं। पेट की ओर नमी हई और बाहर की ओर आयत (convex) होता हैं। इसके कुक्षि भाग में छेद होते हैं। रेखाएं)। डह्नण ने वर्मिमत्स्य का अर्थ सर्पाकार किया है, और कुछ लोग रोहिष मत्स्य के आकार की जलौका कर्बरा मानते हैं ऐसा कहा है। Raktamokshana treatment अतः कुक्षि में छेद का अर्थ कहीं पर कुक्षि छेदयुक्त नीचे झुकी हुई और कहीं पर उन्नत कुक्षि- ऊपर उठी हुई ऐसा किया है। कबर यह शब्द भूरे रंग के लिए प्रचलित है। रक्तवर्ण में श्वेत वर्ण मिलाने पर हलका लाल और वैवर्ण्य युक्त जो रंग होता है उसे कर्बर कहते हैं। वाग्भट ने ‘रक्तः श्वेत’ ऐसी वर्णवाली जलौका सविष मानी है।

3.. अलगर्दा-इसके शरीर पर वलियां (रखाएं) होती हैं जो रोम के सदृश् दिखाई देती है। इसके दोनों पार्श्व फुले हुए होते हैं. और मुख काला होता है। Raktamokshana treatment वाग्भट ने “राजयो रोमशाश्चता” राजी युक्त तथा रोमश जलौका को सविष कहा है।

4. इंद्रायुधा जलौका- इंद्रधनुष्य के समान ऊपर के भाग में चित्रविचित्र वर्णवाली, रेखाओं से युक्त जलौका इंद्रायुधा कहलाती है Raktamokshana treatment वाग्भट ने भी इंद्रायुधा जलौका का समावेश सविष में किया है।

5. सामुद्रिका जलौका-ये जलौकाएं किंचिद् काली तथा पीले रंग की होती हैं और कई रंग के बिंदयुक्त फूलों के समान चित्रित होती हैं।

6. गोचंदना जलौका-इनके नीचे का भाग बैल के वृषण के समान दो भागों में विभक्त सा दिखाई देता है, Raktamokshana treatment तथा मुख छोटा होता है। वाग्भट ने अति चपल और स्थूलता-पिच्छिलता ये सविष जलौका के सामान्य लक्षण कहे हैं।

निर्विष जलौकाएं

निर्विष जलौकाएं जो चिकित्सा में प्रयोज्य हैं, वे निम्नलिखित छः प्रकार की होती हैं।

1. कपिला जलौका-मनःशिला (मन्सील) के समान वर्णवाली पार्श्व बाजू में, तथा पृष्ठ (पीठ) मुद्ग (मूंग) के वर्ण की ओर स्निग्ध होती है। Raktamokshana treatment यहां कापिल शब्द ही कपिल वर्ण का द्योतक है।

2. पिंगला जलौका – यह किंचित् लाल-पिंगल वर्ण की, गोल आकार की और शीघ्र चलनेवाली होती है।

3. शंकुमुखी जलौका – यकृत् खंड के समान वर्णवाली जल्दी से रक्त चूसनेवाली, तीक्ष्ण मुख-शंकुवाली (या Succer) जलौका शंकुमुखी कहलाती है। Raktamokshana treatment तथा अनिष्ट गंध (दुर्गंध) वाली जलौका मूषिका कहलाती है।

4. मूषिका जलौका-मुषिक लांगुल के समान आकृति वाली, और उसी वर्णवाली कमल (श्वेत कमल) के सामान विस्तीर्ण मखवाली जलौका को पुंडरीक मुखी कहते हैं।

5. पुंडरीकमुखी जलौका- मूंग के समान वर्णवाली, हरितवर्ण और पुंडरीक मुखी

Previous article
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments