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Basti in panchakarma

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व्याख्या आयुर्वेदीय चिकित्सा में पंचकर्म का एक विशिष्ट महत्त्वपूर्ण स्थान है [Basti in panchakarma] और में बस्ति चिकित्सा’ का ऐसा ही अतिशय महत्त्वपूर्ण स्थान है। बस्तिचिकित्सा आयुर्वेद की सारे चिकित्साजगत् के लिए ऐसी देन है जो अपने गुणों एवं उपयोगिता के गौरवास्पद स्थान विभूषित करती है। ‘बस्ति’ यह शब्द बस्तिदान में उपयुक्त यंत्र – अर्थात् प्राणियों के मूत्राशय (Urinary bladder) के शाम से प्रचलित हुआ है। बस्ति-अर्थात् औषधियों का आभ्यंतर प्रविष्ट कराना, इस विधि से बस्ति यह नाम दिया गया है। शब्द की वैव्याकरणीय व्याख्या निम्नलिखित प्रकार की है। यह

वसु-निवासे बस्-आच्छादने वस्-वासने सुरभिकरणे, बनित-वातेः आवृणोति मूत्र। वस्-तिच् । नाथेाधोभागे मूत्राधारे स्थाने (पु.) ।।

औषध दानार्थे द्रव्यभेदे ।।

अर्थात् वस- शब्द निवास-रहने के अर्थ में आच्छादन करने के अर्थ में या सुगंधी

कल्कता के अर्थ में उपयोगी है। बस्तिशब्द-बस्ति जो मूत्र को आवरण करता है (धारण करता है) वम् में तिच् प्रत्यय से बना है, जो नाभि के अधोभाग में रहने वाले मूत्राधार स्थान के लिए, औषधदान के साधन द्रव्यभेद के लिए प्रयुक्त है और सुश्रुत में भी आगे इसी प्रकार से इनकी व्याख्या और निरुक्ति की हुई मिलती है। मूत्राधार या बस्ति के द्वारा जो औषधि (मुद्यादि मार्ग से) प्रविष्ट की जाती है, जो शरीर में वास करती है, (अमुक काल तक रहती है) त्यहा बस्ति कहलाती है। Basti in panchakarma बस्ति शब्द संस्कृत में पुल्लिगी है।

सामान्य परिचय

सामान्यतः बस्ति यह शब्द सभी बस्तियों के लिए प्रयुक्त किया जाता है, जिसमें निक्का, अनुवासन, उत्तरवस्ति आदि बस्तियों का समावेश होता है। तथापि “बस्ति” शब्द साक ने केवल निरूण बस्ति के लिए प्रयुक्त किया हुआ भी मिलता है। “बस्ति व्यापत् मिद्धि जानक सिद्धि स्थान का सातवाँ अध्याय है जिसमें चरक ने केवल निरूह बस्ति की व्याप और उनकी चिकित्सा का वर्णन किया है। इस पर टीका करते हुए चक्रपाणि और नेरखा है कि “बस्ति” शब्द निरूह के लिए लिया गया है। इसी तरह ‘शिरोबस्ति की विधि के लिए भी बस्ति शब्द प्रयुक्त हुआ मिलता है।

बस्ति वह प्रक्रिया है जिसमें प्रायः गुदमार्ग से औषधि सिद्ध क्वाथ, स्नेह, क्षीर, [मांसास रक्तादि इस्यों को पक्वाशय में प्रविष्ट किया जाता है। यहाँ प्रायः शब्दप्रयोग करने का कारण यह है Basti in panchakarma कि गुदमार्ग के अतिरिक्त मुत्रमार्ग तथा अपत्यपथ से भी बस्ति दी जाती है। जिसे उत्तरबस्ति कहा जाता है, इतना ही नहीं बल्कि व्रण में भी व्रणमुख से बस्ति दी जा सकती है और ऐसे व्रण-बस्ति के नेत्र के प्रमाण का सुश्रुत में वर्णन किया हुआ मिलता है। अतएव बस्ति की व्याख्या अरुणदत्त और शार्ङ्गधर ने की है, उस प्रकार “बस्ति के द्वारा वी जाने के कारण बस्ति कहलाती है” यही उचित है। गुद से पक्वाशय में, मूत्र मार्गो से मूत्राशय में. अपत्यमार्ग से गर्भाशय में या व्रणदि मार्गों में औषधियों को पहुंचाने के लिए यह आवश्यक है कि द्रव्यों को दबाव के साथ (Pressure से) अंदर ढकेला जाये। पहले जमाने में जब कि रबर का आविष्कार नहीं हुआ था, Basti in panchakarma तब इस कार्य में गाय, बैल, बकरे, भैंस इत्यादि णणियों के मूत्राशय का (बस्ति) उपयोग एक संकोच प्रसरणशील थैली के रूप में किया जाता था, जिससे यह ‘कर्म बस्ति’ कहा जाने लगा और अब यह नाम रूढ़ हुआ है।

यह बस्तिकर्म स्नेहन, स्वेदन, वमन, विरेचनादि सभी कर्मों की अपेक्षा श्रेष्ठ माना गया है। इसका कारण यह है कि स्नेहादि कर्मों की उपयोगिता मर्यादित है, लेकिन बस्ति व्यापक कर्मकारी है। प्रायः सभी लोगों की कल्पना होती है कि बस्ति यह (Enema) एनीमा का एक नामांतर है, परन्तु बस्ति को आधुनिक वैद्य शास्त्र का ‘एनीमा’ समझना एक बड़ी भूल है। बस्ति के अनेक प्रकारों में से एक प्रकार एनीमा हो सकता है किंतु सभी बस्ति कर्म एनीमा के अंतर्गत नहीं जा सकते। सामान्यतः एनीमा मल को निकालने के लिए दिया जाता है। Basti in panchakarma आधुनिक वैद्यशास्त्र में कुछ एनीमा पोषण के लिए दिये जाने का विधान है-लवण एवं ग्लुकोज का इस तरह उपयोग करना आधुनिक शास्त्र-सम्मत है, तथापि इनका उपयोग आज नहिवत् हुआ है और इनके साथ भी एनीमा का उद्देश्य और कार्मुकत्व मर्यादित है। जहां आयुर्वेदीय बस्ति की कल्पना, उद्देश्य और उपयोगिता अत्यंत व्यापक है।

अनेक औषधियों के संयोग के कारण बस्ति दोषों का शोधन करती है, संशमन भी करती हैं, मलों की संग्राही भी होती हैं, Basti in panchakarma क्षीण शुक्रवाले आतुरों का शुक्र बढ़ाती हैं, कृशों को इस्थूल करती है, स्थूलों को कृश करती है, नेत्रों की ज्योति बढ़ाती है, वयः स्थापन करती है-अर्थात तारुण्य को चिरकाल तक रखकर बुढ़ापा देर से लाती है, वर्ण को उज्ज्वल करती है, बल को बढ़ाती है। आयुष्य को कायम रखकर आरोग्य की वृद्धि करती है-इत्यादि अनेक गुणों को करती है। इस तरह बस्ति एक अतीव व्यापक, शरीर के प्रत्येक अवयव को कुछ-न-कुछ लाभ पहुंचाने वाली प्रशस्त चिकित्सा है।

बस्ति यह वात की प्रधान चिकित्सा है, तथापि वात, पित्त, कफ तीनों दोषों में, रक्त में, दोषों के संसर्ग में, सत्रिपात में यह लाभप्रद होती है। शरीर में रोग प्रसार के शाखा कोष्ठ, और मर्म ये तीन मार्ग होते हैं। Basti in panchakarma इन तीन मार्गों में दोषों को प्रसृत करने में वायु की बहुत ज्यादा उत्तरदायिता होती है। क्योंकि स्वेद, मल, मूत्र, पित्त कफादि के संहनन का तथ वहन का विक्षेपण का कार्य वायु ही शरीर में करता है और उस वायु के लिए बसि समान महत्ता प्राप्त है, तथा कुछ विद्वान तो उसे ‘संपूर्ण चिकित्सा’ भी मानते है।” परमश्रेष्ठ चिकित्सा कही गई है। अतएव बस्ति को सभी चिकित्सा की आधी चिकित्सा

बस्ति प्रकार

बस्ति के अनेक प्रकार है और अनेकविध आधारों पर अनेक भेद किये जा सकते इन सब भेदों का नीचे वर्णन किया जाता है।

क) अधिष्ठान भेद-बस्ति जिस अधिष्ठान में दी जाती है उस आधार पर बस्ति के

निम्नलिखित ४ भेद हैं।

1. पक्वाशयगत-जो गुद मार्ग से दी जाती है, और औषध द्रव्य का अधिष्ठान पक्वाशय होता वह पक्वाशयगत बस्ति है।

2. गर्भाशयगत-स्त्रियो में गर्भाशय के दोषों को दूर करने के लिए दी जानेवाली, अपत्यपथ से गर्भाशय में औषधों को पहुंचानेवाली बस्ति गर्भाशयगत बस्ति है।

3. मूत्राशयगत-मूत्रमार्ग (मेद्र या योनि) से मूत्राशय में जो बस्ति पहुंचाई जाती

है-वह मूत्राशयगत बस्ति है। गर्भाशयगत और मूत्राशयगत बस्ति को ‘उत्तर बस्ति’ ऐसी संज्ञा दी जाती है।

4. व्रणगत-व्रणों में व्रण मुख से शोधन, रोपणार्थ औषधि द्रव्यों को पहुंचाना व्रणगत बरित है।

(ख) द्रव्यभेद-बस्ति प्रयुक्त द्रव्य क्वाथ है, या स्नेह है, इस आधार पर बस्ति के दो प्रकार होते हैं।

1. निरूहबस्ति-जिस बस्ति में क्वाथ की प्रधानता होती है Basti in panchakarma उसे निरूह बस्ति कहते हैं।

निरूह बस्ति का ही दूसरा नाम आस्थापन बस्ति हैं। दोषों को शरीर में से बाहर निकाल देने के कारण अथवा रोगों को हरण करने के कारण इसे ‘निरूह’ कहा जाता है और वयस्थापन करने के कारण या आयु स्थापन करने के कारण इसे आस्थापन कहते है। कर्म के आधार पर निरूह के अनेक भेद होते हैं। उनका विचार ‘कार्मुकता के आधार’ पर भेद बताते हुए किया है। Basti in panchakarma निरूह का ही एक विकल्प माधुतैलिक बस्ति माना गया है और यापन बस्ति, सिद्धबस्ति, तथा युक्तरथ बस्ति इसके पर्याय कहे है।” जिस बस्ति में मधु और तैल ये प्रधान द्रव्य होते हैं उसे माधुतैलिक बस्ति कहते हैं और युद्धादि के लिए रथ में बैठकर जाना हो, हाथी घोड़ों की सवारी करते हुए जाना हो (बैलगाड़ी, घोड़े, ऊंट, सायकल, स्कूटर, मोटर, ट्रेन, हवाई जहाज आदि सब वाहनों का इनमें उपलक्षण से समावेश करना चाहिये)- ऐसी अवस्था में भी जो बस्ति निशिद्ध नहीं है, ली जा सकती है, उसे युक्तरथ बस्ति कहते हैं। शरीर में जो बल उत्पन्न करती है, वर्ण प्रसादन करती है, Basti in panchakarma और सैकड़ों रोगो को मिटाती है- (सिद्ध करती है) इस कारण सिद्धबस्ति कहलाती है।” यापन बस्ति वह है जो सब काल में दी जा सकती है, आयुष्य का यापन करती है-बढ़ाती है।

2. अनुवासन बस्ति-जिस बस्ति में स्नेह मुख्य द्रव्य होता हैं उसे अनुवासन बस्ति कहते है। सुश्रुत ने इसे ‘स्नैहिक बस्ति’ ऐसा शब्द प्रयोग भी किया है। अनुवासन बस्ति को स्नेहबस्ति का एक प्रकार माना है। Basti in panchakarma अनुवासन की निरुक्ति इस तरह की गई है-जो अनुवासन अंदर रहते हुए भी कोई दोष उत्पन्न नहीं करती, तथा अनुदिन-प्रतिदिन दी जा सकती है वह अनुवासन बस्ति है। स्नेह बस्ति के ३ भेद मात्रा के आधार से किये जाते है।

3. स्नेह बस्ति-वय के अनुसार निरूह की जो मात्रा होती है, उससे एक चतुर्थांश (पादावकृष्ट) स्नेह बस्ति में स्नेह दिया जाता है। यदि द्वादशप्रसृत्ति प्रमाण को निरूह बस्ति हो तो स्नेह बस्ति ३ प्रसृति की समझनी चाहिये। डल्हण ने टीका में कहा है कि-स्नेहबस्ति की उत्तम मात्रा ६ पल (२४ तोला), मध्यम मात्रा ३ पल (१२ तोला) और कनीयसी मात्रा १।।

पल (६ तोला) की होती है। स्नेहबस्ति का आधा आधा भाग कर यही प्रमाण उपलब्ध होता है। इसे ही चक्रपाणि ने स्नेहबस्ति ६ पल स्नेह की, अनुवासन बस्ति ३ पल स्नेह की और मात्रा बस्ति १ ।। पल स्नेह की होती है है ऐसा कहा है।

२. मात्रा बस्ति-हस्व स्नेहपान की जो मात्रा कही गई हैं वह (अर्थात् छः घंटे में जरणयोग्य स्नेह) मात्राबस्ति में स्नेह की मात्रा होनी चाहिये। Basti in panchakarma ” सुश्रुत ने इसे अनुवासन बस्ति का प्रकार मानकर अनुवासन का आधा प्रमाण-मात्रा-बस्ति

का होता है ऐसा कहा है।”

३. अनुवासनबस्ति-स्नेहबस्ति के आधा प्रमाण में स्नेह देना यह अनुवासन बस्ति कहलाती है।Basti in panchakarma ” संक्षेप में स्नेहबस्ति के ३ प्रकार हैं।

१. जो निरूह मात्रा के एक चतुर्थांश प्रमाण में दी जाती है वह स्नेहबस्ति,

२. स्नेहबस्ति के आधे प्रमाण में दी जाती है वह अनुवासन बस्ति और

३. अनुवासन बस्ति के आधे प्रमाण में दी जाती है वह मात्रा बस्ति है और इनका प्रमाण क्रमशः ६ पल (२४ तोला), ३ पल (१२ तोला) और १।। पल (६ तोला) लिया जा सकता है।

या (ग) कार्मुकता के आधार पर भेद-निरूह बस्ति के कार्मुकता के आधार पर सुश्रुत ने निम्नलिखित भेद किये है। Basti in panchakarma तत्तद् प्रकार के द्रव्यों का उपयोग इनमें किया जाता है।

१. शोधन बस्ति-जो दोषों को और मलों को निकालकर शोधन का कार्य प्रधानरूप से करती है। इसमें शोधन द्रव्य डाले जाते हैं।

२. लेखन बस्ति-जो मेदोधातु को कम कर, शरीर का लेखन करती है।

३. स्नेहन बस्ति-जिसमें अधिक स्नेह का उपयोग किया जाता है, और जो शरीर का स्नेहन करती है उस बस्ति को स्नेहनबस्ति कहते हैं। Basti in panchakarma यह अनुवासन प्रकार की स्नेहबस्ति नहीं है।

जान

४. वृंहण बस्ति – जो रसादि धातुओं को बढ़ाकर शरीर का वृहत्व करती है वह बृंहण बस्ति कहलाती है।

वाग्भट ने निम्नलिखित और तीन भेद बताये है :-

१. उत्क्लेशन बस्ति-जो दोषों को और मलों को उत्क्लिष्ट करती है, Basti in panchakarma उनके प्रमाण को

को मि

बढ़ाती है, द्रवीभूत करती है वह उत्क्लेशन बस्ति कहलाती है।

२. दोषहर बस्ति-यह शोधन प्रकार का निरूह है।

३. शमन बस्ति – जो दोषों का शमन करें वह शमनबस्ति कहलाती है।

वासन गह

शार्ङ्गधर नै उत्क्लेशन, दोषहर, शोधन, शमन के अतिरिक्त लेखन, बृंहण पिच्छिल, दीपन ऐसे और चार प्रकार के बस्तियों का उल्लेख किया है। चरकसंहिता में बस्ति वर्णन प्रकरण में (सि.अ.८) १. वातघ्न बस्ति २. बलवर्णकृत बस्ति ३. स्नेहनीय बस्ति ४. शुक्रकृत कृमिघ्न बस्ति ६. वृषत्वकृत् बस्तियों का उल्लेख किया है। Basti in panchakarma सुश्रुत ने जैसे कि पहले ही कह आये हैं- बस्ति को-शोधन, संग्राही, शुक्रवृद्धिकृत, कृशों को स्थूल करने वाली इत्यादि विप्रकार के कार्य करने वाली कहा है। इन सब के आधार पर बस्ति के निम्नलिखित कार्मक भेद हो जाते हैं।

१. शोधन बस्ति – १. तीक्ष्ण बस्ति-२. मृदुबस्ति.

२. लेखन बस्ति

३. उत्क्लेशन बस्ति

४. शमन बस्ति वातशमन, पित्तशमन, कफशमन, शूलप्रशमानादि

५. बृंहण बस्ति-कृशों को स्थूल करने वाली

६. कर्षण बस्ति-स्थूलों को कृश करने वाली

७. रसायन बस्ति

८. बाजीकरण बस्ति-या वृष्य बस्ति, क्षीणेंद्रिय बलकर तथा व्यापन्न योनि में पथ्यतम दो प्रकार की होती है।

९. स्नेहनीय बस्ति

१०. चक्षुष्य बस्ति

११. संग्राही बस्ति

१२. वर्णप्रसादन बस्ति

(घ) बस्तिसंख्या के आधार पर भेद-बस्तिकोर्स, या बस्ति कितनी संख्या में देनी चाहिये यह विषय लेकर चरक ने बस्ति के और तीन भेद किये है। Basti in panchakarma वाग्भट ने भी इसका अनुसरण किया है।

१. कर्म बस्ति – इस क्रम में कुल ३० बस्तियाँ दी जाती हैं। इसमें प्रथम बस्ति

अनुवासन बस्ति होती है और, फिर एक निरूह एक अनवासन इस क्रम से १२ निरूह और १२ अनुवासन बस्तियां दी जाती हैं, Basti in panchakarma और अंतिम ५ पुनः अनुवासन बस्तियां दी जाती है। इस तरह वस्तुतः अंत में ६ अनुवासन बस्तियां होती हैं। इसक्रम में कुल १२ निरूह और १८ अनुवासन बस्तियां दी जाती है। इसे ‘कर्मबस्ति’ कहा जाता है।

१. कालबस्ति-इस क्रम में कुल १६ बस्तियां दी जाती हैं। Basti in panchakarma प्रथम एक बस्ति स्नेहबस्ति

फिर क्रम से ६ निरूह और ६ स्नेह बस्तियां और अंत में ३ पुनः स्नेहबस्ति यह इसका क्रम है। चरक ने कर्म बस्ति की संख्या ३० कहकर उसकी आधी संख्या में काल बस्ति देने को कहा है, Basti in panchakarma तथापि ३० का आधा १५ होते हुए भी १६ बस्ति समझना चाहिये। चक्रपाणि कहते हैं कि यहां ३० का बिलकुल आधा न लेते हुए १५ के बदले १६ बस्तियां दी जानी चाहिये। जतुकर्ण ने भी कालबस्ति में १६ बस्तियां कही है। इस क्रम में कुल निरूह ६ और अनुवासन १० संख्या में दिये जाते है।

वाग्भट ने कालबस्ति की संख्या १५ कही है। पहली बस्ति स्नेहबस्ति, फिर एक निरूह एक अनुवासन क्रम से ११ बस्तियां और अंत में पुनः ३ अनुवासन की कही है। वस्तुतः इसमें चरक सिद्धांत का ही पालन किया है। चरक ने “काले त्रयोंत पुरातस्तथैकः स्नेहा निरूहांतरिताश्च षट स्युः” ऐसा कहा है। Basti in panchakarma इस क्रम से पहली बस्ति स्नेह की, फिर छः निरूह और छः अनुवासन और अन्त में३ अनुवासन बस्तियां होती हैं। २, ४, ६, ८, १० वें और १२ वें दिन निरूह, इस तरह छः निरूह और १, ३, ५, ७, ९, ११ वें दिन अनुवासन इस तरह पहला अनुवासन छोड़कर ५ अनुवासन, और अंत में १३, १४ और १५वें दिन पुनः अनुवासन इस तरह ३ संख्या पूर्ण हो जाती है। चक्रपाणि के क्रम से देने पर अंत में १३, १४, १५ और १६ वें दिन इस तरह ४ अनुवासन हो जाते हैं।

योगबस्ति-इस क्रम में कुल ८ बस्तियां दी जाती हैं। पहली बस्ति अनुवासन, फिर एक निरूह, एक अनुवासन क्रम से ३ निरूह और ३ अनुवासन और अंत में पुनः एक अनुवासन बस्ति दी जाती है। Basti in panchakarma चरक ने कालबस्ति (१६) की आधी संख्या अर्थात् संख्या योग’बस्ति की कही है और वाग्भट ने भी योग बस्ति में ८ बस्ति देने को कहा है। इस तरह चरक ने यदि कालबस्ति में क्रम भंग किया है तो वाग्भट ने योगबस्ति में किया है। तथापि यहां निरूह से आगे और पीछे अनुवासन का प्रमाण अधिक होना चाहिये यह सामान्य उद्देश्य दोनों को स्वीकार्य होने से क्रमभंग का प्रश्न उपस्थित

नहीं होता। उपयुक्त क्रम में कर्म, काल और योग बस्ति को रूढ़ नाम समझनी चाहिये। या ग्रंथकार का विशिष्ट पारिभाषिक शब्द समझना चाहिये। Basti in panchakarma इसके सिवाय इस संज्ञा कोई अर्थ प्रतीत नहीं होता। का दूसरा

(ङ) अनुषंगिक भेद-इनमें उन बस्तियों का समावेश किया है जिनका आचार्यों ने विशिष्ट नाम से उल्लेख किया है। Basti in panchakarma यद्यपि उनको उपर्युक्त किसी भेदे में अलग नहीं गिना है। तथापि उन शब्दों का ज्ञान छात्रों को वैद्यों को तथा अन्वेषकों को बराबर ध्यान में रखने योग्य होने के कारण उनको नीचे प्रस्तुत किया जाता है।

१. यापन बस्ति-इसका उपयोग बल, शुक्र, मांस बढ़ाने के लिए तथा बस्ति परिहार

काल में मैथुनादि अपथ्य का व्यवहार करने से उत्पन्न व्यापद की चिकित्सा के लिए किया जाता है। यापन बस्ति सभी कालों में दी जा सकती है, Basti in panchakarma और यह निरापद बस्ति है। इससे -आयुष्य का यापन होता है, दीर्घानुवर्तन होता है अतः इसे यापन बस्ति कहते हैं। इन बस्तियों में क्वाथ के साथ दूध, जांगल, मांस रस, मधु, घृत, गुड़, कुक्कुटादि प्राणियों के – अंडे (का रस) इत्यादि का उपयोग होता है। इस तरह कुल २६ बस्तियां चरक ने वर्णित की है उनका आगे यथावसर वर्णन किया है।

१. सिद्ध बस्ति-अमुक रोगों में उन रोगों को सिद्ध करने वाली (रोगों को दूर करने 1 वाली) जो बस्तियां दी जाती हैं उन्हें ‘सिद्धबस्ति’ कहते हैं।२७

३. प्रसृत यौगिकी बस्ति- बस्ति, वयानुसार विशिष्ट प्रमाण में दी जाती हैं। तथापि

कुछ बस्तियों का विशिष्ट प्रमाण के साथ देने का उल्लेख किया हुआ मिलता है। Basti in panchakarma इस तरह प्रसृत्ति (लगभग ८ तोला) के प्रमाण से जो बस्तियां वर्णित हैं उन्हें प्रासृत योगिकी बस्ति कहते है। इस विषय पर चरक ने खास अध्याय (सि.अ.८) लिखा है और इसमें क्षीरबस्ति, तैल प्रसत्रादि बस्ति, पटोलादि बस्ति, विडंगादि बस्ति आदि बस्तियों का वर्णन किया है जिनका आगे विचार किया जाएगा।

४. द्वादश प्रसृतिकी बस्ति-जिन बस्तियों में कुल द्रव्य का प्रमाण १२ प्रसृति (९६

तोला) होता है. उसे द्वादश प्रासतिकी बस्ति कहा जाता है। Basti in panchakarma ” यह बस्ति का परम प्रमाण है। इस बस्ति का एक उदाहरण माधुतैलिक बस्ति सुश्रुत ने दिया है-जिसमें सैंधव । कर्ष, मधु २ प्रसूत, स्नेह ३ प्रसृत, कल्क १ प्रसूत, क्वाथ ४ प्रसत और प्रक्षेप २ प्रकृत मिलाकर १२ प्रसूति की बस्ति दी जाती है।

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